एक गुजारिस उससे जिसकी कमी उसके होने पर भी खलती रही जिन्दगी इन्तजार बन यू ही चलती रही जब मेरी काया का ये ढेर खाक बन जाये तो तुम अपने हाथों में गुलाब लिए चले आना मेरी कब्र पर फिर से उस प्यार की खुशबू फैलाने जिसके लिए में जीवन भर तरसती रही। छूकर अपने हाथों से फिर मुझे एक बार जीने का एहसास दिला देना फिर वो फूलो की माला मेरी कब्र पर चढ़ा मेरी रूह को सात जन्म के बन्धनों वो सात फेरे याद दिला देना। बस एक गुजारिस है तुमसे जब तुम आओ तो अकेले ही आना तोहफा वक्त का साथ लाना ताकि चन्द लम्हे गुजार सकूँ और बटोर सकूँ उस एहसास को रूह बन रूह तक समा सकूँ के तुम सिर्फ और सिर्फ मेरे हो। कविता जयेश पनोत Written on 24 may अतः 10:20 pm #एक गुजारिश