पूछते है वो इतरा के तुम्हारी कलम कैसे लिख लेती है बस इतना ही कह पाए तुम्हारी आखे गजल कह लेती है हमारी निगाहे बेजुबान लफजो को कागज पे उतार लेती है आखे