देखता हूं एक मौन अभाव सा संसार भर में, सब विसुध, पर रिक्त प्याला एक है, हर एक कर में, भोर की मुस्कान के पीछे छिपी निशि की सिसकियां, फूल है हंसकर छिपाए शूल को अपने जिगर में, इसलिए ही मैं तुम्हारी आंख के दो बूंद जल में यह अधूरी जिन्दगी अपनी डुबाना चाहता हूं। मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं॥ ****गोपालदास नीरज