कल आबाद थी शहर की छतें सारी। आज चांद के कोई साथ नहीं।। कल चांद ढूँढ रही थी नज़रें सारी। आज चांद ओझल है किसी को खबर नहीं।। कल चल निकला था एक कारवां चांद की तलाश में। आज चांदनी कब आएगी किसी को इंतजार नहीं।। रात तो हर रोज आती है। चांद भी आता है कभी अधूरा,कभी पूरा ,कभी बादलों में छुपा ,तो कभी चांदनी बेखरता सब से मिलता ।। चांद बेशक समझता है लोगों को,वो अपनी एहमियत भी जानता है। वो बादलों में तन्हाई काटता है पर आता है लोगों के लिए।। कल जो चांद आया था वो लोगों का था। हर रोज जो आता है वो आसमां का है।। ये भी हमने ही तय किया कि चांद किसका है। उस पर किसी एक का हक नहीं वो सबका है।। चांद के घाव आसमां में हैं,सितारों के पास है इलाज़ उसका। बाकी लोगों के लिए चांद कल भी जरुरत-ए-उम्मीद था। चांद हर रोज ही जरूरत-ए-उम्मीद है।। ©Alok krishya #Moon