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आख़िर क्यां होना था हश्र,जो तुमने बोया हैं... मैने

आख़िर क्यां होना था हश्र,जो तुमने बोया हैं...
मैने पत्थर गवाये, तुमने हीरा खोया हैं..।

ये नींद बिस्तर की होती तो उसे जगा देता...
लेक़िन चौकीदार शायद कुर्सी पे सोया हैं..।

सिर्फ़ पानी होता समंदर,बहुत प्यास बुझाता...
कितने आशिक़ों ने यहां आँखों को भिगोया हैं..।

जिंदग़ी और मौत का रोज बोसा चल रहां हैं...
मैंने तो खामखां उम्र भर ये जिस्म ढोया हैं..।

तू और आ गयी सुबह, सूरज को चकमा देकर...
कल रात मैने चाँद खूब अच्छे से धोया हैं..।

                           - ख़ब्तुल
                       संदीप बडवाईक

©sandeep badwaik(ख़ब्तुल) 9764984139 instagram id: Sandeep.badwaik.3 बोसा
आख़िर क्यां होना था हश्र,जो तुमने बोया हैं...
मैने पत्थर गवाये, तुमने हीरा खोया हैं..।

ये नींद बिस्तर की होती तो उसे जगा देता...
लेक़िन चौकीदार शायद कुर्सी पे सोया हैं..।

सिर्फ़ पानी होता समंदर,बहुत प्यास बुझाता...
कितने आशिक़ों ने यहां आँखों को भिगोया हैं..।

जिंदग़ी और मौत का रोज बोसा चल रहां हैं...
मैंने तो खामखां उम्र भर ये जिस्म ढोया हैं..।

तू और आ गयी सुबह, सूरज को चकमा देकर...
कल रात मैने चाँद खूब अच्छे से धोया हैं..।

                           - ख़ब्तुल
                       संदीप बडवाईक

©sandeep badwaik(ख़ब्तुल) 9764984139 instagram id: Sandeep.badwaik.3 बोसा