'जीत तो अब आरम्भ है' देखो शीर्ष पर राम को सौजन्य, अनुमोदन एवं आचार सोचो कुछ तो घटा है जो कोविद है । विरोध हुआ समानांतार चयन हुआ विराट जीत तो अब आरम्भ है लम्बित पर अनुशंसा भर नहीं उस पथ की जो कोविद है। आगाज है केवल समर्पन का अचूक या लक्ष्य भेदि नहीं केवल निराला अखिल भारत सा संरचित दृष्टिकोणो पर समर्पण में एक और हाथ बढ़ा जो कोविद है। गौण रहस्यमयता और एेसी एकाग्रता प्रतिष्ठित ही कर लेने की ललक उत्सर्जित अन्य व अन्य आयामो के मध्य सरलता से सत्य लिए कठोर वैज्ञानिक है यह कोविद है। प्रारंभ से जो क्रमिक विकास की ओर मूलभूत एवं अनुशांधनिक दौड़ में जुगत लगाती जोश लचीला कदम बढ़ाती कांधे से कांधा मिलाने को आधुनिकता की ओर यह संयोग कोविद है। अनेक मानकों पर उपस्थिति विस्तार लिए संचित परकाष्ठा द्वारा परिभाषित आचरण सत्र दर सत्र विपक्ष का निर्माण करती समाजिक समरसता मे समुहिकता बढ़ाती विरोधाभाषी लोकतंत्र मे यह कोविद है। कविता, वर्तमान महामहिम के चयन के विशेष दिन लिखी गई थी।फेसबुक स्मृति से योरकोट तक का सफर करती यह कविता नये आयामों में प्रवाहित होती लगी।इसलिए प्रस्तुत कर रहा हूँ। जीत तो अब आरम्भ है' देखो शीर्ष पर राम को सौजन्य, अनुमोदन एवं आचार सोचो