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एक नामुकम्मल दास्तां (भाग: तृतीय (द्वितिय)) अनुश

एक नामुकम्मल दास्तां

(भाग: तृतीय (द्वितिय))

अनुशीर्षक में पढ़ें

**ये भाग ज़रा लम्बा है। इत्मिनान से पढ़ियेगा। बात बहुत बड़ी थी। लेकिन उसके लिए वो इतनी बड़ी वजह भी नहीं बन सकती थी कि, वो अपनी जान को छोड़ दे। उसने अपनी जान से कहा कि वो चिंता ना करे, वो उससे बहुत प्यार करता है, और हमेशा करेगा और पूरी ज़िन्दगी में कभी भी ये बात उन दोनों के रिश्ते पे असर नहीं डालेगी। वो अब भी रोते जा रही थी। जिसकी आँखों में वो एक बूँद आँसू नहीं देख सकता था, वो उसके सामने रोये जा रही थी। और वो कुछ भी ना कर पा रहा था। क्या करें वो? जल्दी ही उसे तरक़ीब ढूँढनी थी। पता नहीं अचानक क्या हुआ कि उसने कहा, "जान रोना बंद कर दो, वरना कान के नीचे एक दूँगा"। वो घबरा गई कि वो उससे ऐसे क्यूँ बात कर रहा है। उसने गुस्से में पूछा, "क्या? क्या कहा तुमने?" तो ज़वाब मिला, "
"जान रोना बंद कर दो, वरना कान के नीचे एक दूँगा। एक प्यारा सा मीठा सा चुंबन"। और इतना सुनते ही फूट फूट के रो रही लड़की खिल-खिला के हँस दी और उस लड़के से कहा कि पूरी दुनिया में एक वही है, जो उसे किसी भी पल हँसा सकता था और ये बात उसने उसे बस इसिलिए नहीं बता रही थी क्यूँकी वो उससे बहुत ज्यादा प्यार करती थी और उसे खोना नहीं चाहती थी। उसे खुशी हुई कि वो उसे चुप करवा पाया और फिर उसे समझा-बूझा कर सुला दिया।

वो तो अपना मन हल्का कर के सो गई थी। पर इसके मन में एक तूफान उमड़ता छोड़ गई थी। उसे उस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था पर वो अपने घर वालों को कैसे समझाएगा। और छुपाना भी क्या सही होगा इतनी बड़ी बात? वो सोचता रहा, सोचता रहा और फिर उसे कब नींद आ गई पता ही ना चला।
अगली सुबह उठ कर वो अपनी माँ के पास गया और उनकी गोदी में लेट गया। माँ को समझ नहीं आया कि आज उनके लाडले को अपनी माँ पे इतना प्यार क्यूँ आ रहा है? हो ना हो ज़रूर कोई काम ही होगा।

उसने लेटे-लेटे माँ से कहा कि उसकी जान का कल रात फ़ोन आय था और उसने उसे कुछ बातें बताई जिसे वो अपनी माँ को बताना चाहता था, पर उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे बताये। माँ ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा और कहा कि वो उनसे कुछ भी कह सकता है। तब उसने बड़ी हिम्मत करके बताया कि उसकी जान कभी माँ नहीं बन सकती। दरअसल कुछ सालों पहले उसके चाचा के लड़के ने उसका शारीरीक शोषण करने की कोशिश की थी और अपने आप को बचाने के लिए वो जब भागी तो सीढ़ियो से गिरने की वजह से उसके पेट में काफ़ी चोटें आई थी। बाद में हॉस्पिटल में उसे पता चला की उसकी बच्चेदानी वाली जगह नष्ट हो चुकी है और उसका कोई इलाज़ नहीं है। माँ ये सुन कर सन्न रह गई। कुछ पलों तक कमरे में सन्नाटा छाया रहा। दोनों ही कुछ बोल ना सके। माँ की आँखों में आँसू थे शायद एक औरत होने की वजह से वो उस लड़की का दर्द समझ सकती थी। उन्होनें बस इतना ही कहा कि उसके साथ बुरा हुआ और उसमे इसकी कोई गलती नहीं थी। माँ के मन में उसके प्रति कोई द्वेष नहीं था। ये सुन कर उसका बोझ कुछ हद तक हल्का हो गया। ये बात अलग है कि उसने अपनी माँ से ये बात ज़रूर छुपा दी थी कि उसकी मंगनी तय हो चुकी थी किसी और के साथ, जिसे वो पसंद नहीं करती थी। घर वालो की जिद्द की वजह से उसे हाँ करनी पड़ी थी। पर उसकी जान ने उसे भरोसा दिलाया था कि वो सिर्फ उसकी ही है और उसी की रहेगी। वो सही वक़्त आने पे अपने माता-पिता से हमारे लिये बात करेगी।
एक नामुकम्मल दास्तां

(भाग: तृतीय (द्वितिय))

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**ये भाग ज़रा लम्बा है। इत्मिनान से पढ़ियेगा। बात बहुत बड़ी थी। लेकिन उसके लिए वो इतनी बड़ी वजह भी नहीं बन सकती थी कि, वो अपनी जान को छोड़ दे। उसने अपनी जान से कहा कि वो चिंता ना करे, वो उससे बहुत प्यार करता है, और हमेशा करेगा और पूरी ज़िन्दगी में कभी भी ये बात उन दोनों के रिश्ते पे असर नहीं डालेगी। वो अब भी रोते जा रही थी। जिसकी आँखों में वो एक बूँद आँसू नहीं देख सकता था, वो उसके सामने रोये जा रही थी। और वो कुछ भी ना कर पा रहा था। क्या करें वो? जल्दी ही उसे तरक़ीब ढूँढनी थी। पता नहीं अचानक क्या हुआ कि उसने कहा, "जान रोना बंद कर दो, वरना कान के नीचे एक दूँगा"। वो घबरा गई कि वो उससे ऐसे क्यूँ बात कर रहा है। उसने गुस्से में पूछा, "क्या? क्या कहा तुमने?" तो ज़वाब मिला, "
"जान रोना बंद कर दो, वरना कान के नीचे एक दूँगा। एक प्यारा सा मीठा सा चुंबन"। और इतना सुनते ही फूट फूट के रो रही लड़की खिल-खिला के हँस दी और उस लड़के से कहा कि पूरी दुनिया में एक वही है, जो उसे किसी भी पल हँसा सकता था और ये बात उसने उसे बस इसिलिए नहीं बता रही थी क्यूँकी वो उससे बहुत ज्यादा प्यार करती थी और उसे खोना नहीं चाहती थी। उसे खुशी हुई कि वो उसे चुप करवा पाया और फिर उसे समझा-बूझा कर सुला दिया।

वो तो अपना मन हल्का कर के सो गई थी। पर इसके मन में एक तूफान उमड़ता छोड़ गई थी। उसे उस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था पर वो अपने घर वालों को कैसे समझाएगा। और छुपाना भी क्या सही होगा इतनी बड़ी बात? वो सोचता रहा, सोचता रहा और फिर उसे कब नींद आ गई पता ही ना चला।
अगली सुबह उठ कर वो अपनी माँ के पास गया और उनकी गोदी में लेट गया। माँ को समझ नहीं आया कि आज उनके लाडले को अपनी माँ पे इतना प्यार क्यूँ आ रहा है? हो ना हो ज़रूर कोई काम ही होगा।

उसने लेटे-लेटे माँ से कहा कि उसकी जान का कल रात फ़ोन आय था और उसने उसे कुछ बातें बताई जिसे वो अपनी माँ को बताना चाहता था, पर उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे बताये। माँ ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा और कहा कि वो उनसे कुछ भी कह सकता है। तब उसने बड़ी हिम्मत करके बताया कि उसकी जान कभी माँ नहीं बन सकती। दरअसल कुछ सालों पहले उसके चाचा के लड़के ने उसका शारीरीक शोषण करने की कोशिश की थी और अपने आप को बचाने के लिए वो जब भागी तो सीढ़ियो से गिरने की वजह से उसके पेट में काफ़ी चोटें आई थी। बाद में हॉस्पिटल में उसे पता चला की उसकी बच्चेदानी वाली जगह नष्ट हो चुकी है और उसका कोई इलाज़ नहीं है। माँ ये सुन कर सन्न रह गई। कुछ पलों तक कमरे में सन्नाटा छाया रहा। दोनों ही कुछ बोल ना सके। माँ की आँखों में आँसू थे शायद एक औरत होने की वजह से वो उस लड़की का दर्द समझ सकती थी। उन्होनें बस इतना ही कहा कि उसके साथ बुरा हुआ और उसमे इसकी कोई गलती नहीं थी। माँ के मन में उसके प्रति कोई द्वेष नहीं था। ये सुन कर उसका बोझ कुछ हद तक हल्का हो गया। ये बात अलग है कि उसने अपनी माँ से ये बात ज़रूर छुपा दी थी कि उसकी मंगनी तय हो चुकी थी किसी और के साथ, जिसे वो पसंद नहीं करती थी। घर वालो की जिद्द की वजह से उसे हाँ करनी पड़ी थी। पर उसकी जान ने उसे भरोसा दिलाया था कि वो सिर्फ उसकी ही है और उसी की रहेगी। वो सही वक़्त आने पे अपने माता-पिता से हमारे लिये बात करेगी।