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ए ज़िन्दगी क्या किसी रोज़ तेरी ख़ूबसूरत शक्ल में तुझ


ए ज़िन्दगी
क्या किसी रोज़ तेरी ख़ूबसूरत शक्ल में
तुझसे  फिर मुलाक़ात होगी ?
अभी तो तू किसी घरेलू , काम से घिरी बीवी
 की तरह सी रोज़ मिले है मुझे
कभी उलझनों को परे रख 
शोख़ हसीना सी बन के  
ज़माने से छुपते छुपाते
एक पल को तो आ के मिल जा 
की तुझसे फिर से इश्क़ हो जाये 
 musings - 15/12/18

ए ज़िन्दगी
क्या किसी रोज़ तेरी ख़ूबसूरत शक्ल में
तुझसे  फिर मुलाक़ात होगी ?
अभी तो तू किसी घरेलू , काम से घिरी बीवी
 की तरह सी रोज़ मिले है मुझे
कभी उलझनों को परे रख 
शोख़ हसीना सी बन के  
ज़माने से छुपते छुपाते
एक पल को तो आ के मिल जा 
की तुझसे फिर से इश्क़ हो जाये 
 musings - 15/12/18