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हो कौन जिसको देखते ही, सिहर जाता तन बदन। आप भूधरा

हो कौन जिसको देखते ही, सिहर जाता तन बदन।
आप भूधरा का अंश हो,या हो विचारों की पवन।।
आपको पहचानने को मेरा,हो रहा विक्षिप्त मन।
आभा अलौकिक देखनें को,झुलसते मेरे नयन।।

 मैं काल हूँ हाँ काल हूँ,हाँ मैं ही महाकाल हूँ,।

मैं शान्त हूँ मैं ज्वाल हूँ,मैं प्राणहारक काल हूँ।
मै दिक् दिगन्त में लीन हूँ,रूप में विकराल हूँ।

मैं काल हूँ हाँ काल हूँ,हाँ मैं ही महाकाल हूँ,।

नदियों की बहती धार हूँ,सारे विश्व की हुँकार हूँ
ममता में छलकता प्यार हूँ,ज्वालामुखी उद्गार हूँ।
मुझसे सृजन है सृस्टि का,मुझमें ही होता है पतन
कण कण में मैं ही व्याप्त हूँ,प्रकाश का मैं जाल हूँ।

मैं काल हूँ हाँ काल हूँ,हाँ मैं ही महाकाल हूँ,।

ब्रह्मांड का मै आदि हूँ,मैं अन्त हूँ मैं अनादि हूँ
मैं भूत हूँ मैं आज हूँ,मैं ही भविष्य का राज हूँ।
मै विकटसम मैं विराट हूँ,मैं ही समस्या काट हूँ
मैं गगन हूँ मैं चन्द्र भी ,मैं ही प्रभाकर लाल हूँ।

मैं काल हूँ हाँ काल हूँ,हाँ हाँ मैं ही महाकाल हूँ,।। अलौकिक छवि
हो कौन जिसको देखते ही, सिहर जाता तन बदन।
आप भूधरा का अंश हो,या हो विचारों की पवन।।
आपको पहचानने को मेरा,हो रहा विक्षिप्त मन।
आभा अलौकिक देखनें को,झुलसते मेरे नयन।।

 मैं काल हूँ हाँ काल हूँ,हाँ मैं ही महाकाल हूँ,।

मैं शान्त हूँ मैं ज्वाल हूँ,मैं प्राणहारक काल हूँ।
मै दिक् दिगन्त में लीन हूँ,रूप में विकराल हूँ।

मैं काल हूँ हाँ काल हूँ,हाँ मैं ही महाकाल हूँ,।

नदियों की बहती धार हूँ,सारे विश्व की हुँकार हूँ
ममता में छलकता प्यार हूँ,ज्वालामुखी उद्गार हूँ।
मुझसे सृजन है सृस्टि का,मुझमें ही होता है पतन
कण कण में मैं ही व्याप्त हूँ,प्रकाश का मैं जाल हूँ।

मैं काल हूँ हाँ काल हूँ,हाँ मैं ही महाकाल हूँ,।

ब्रह्मांड का मै आदि हूँ,मैं अन्त हूँ मैं अनादि हूँ
मैं भूत हूँ मैं आज हूँ,मैं ही भविष्य का राज हूँ।
मै विकटसम मैं विराट हूँ,मैं ही समस्या काट हूँ
मैं गगन हूँ मैं चन्द्र भी ,मैं ही प्रभाकर लाल हूँ।

मैं काल हूँ हाँ काल हूँ,हाँ हाँ मैं ही महाकाल हूँ,।। अलौकिक छवि