जितनी दूर हुए हम उनसे, और अधिक नजदीक हुए। यादों के पदचिन्ह प्रस्फुटित, अनगिनत हमारे बीच हुए। उनकी यादें रुधिर सरीखी बहती रक्त शिराओं में, हम उनमें वो हममें खोए, नीर-क्षीर सम प्रीत हुए। अरुण शुक्ल "अर्जुन" प्रयागराज