ना जाने क्यों तुम्हारी याद आ रही है, न जाने क्यों दिल बेचैन हो रहा है, न जाने क्यों तुम्हें खोने का डर आ रहा है, न जाने क्यों दिल इतना सहम रहा है। तुम हो पास मेरे ,बातें भी होती हैं, दूरियां इतनी बढ़ गई ,अब पास जाना हुआ मुश्किल है। कहता था उससे रोज, हम दो तन आत्मा एक हैं, वह कहती रही मिलेगी कोई दूजी तुझे, कौन समझाए उस पागल को ईश्वर ने खुद ही बनाआ जोड़ी को। फिर भी आज पता नहीं क्या हुआ है, जो दिल इतना आवारा हुआ है, सोचा कुछ लिख दूं अपनी बेचैनी को, फिर कागज भी पुराना हुआ, कलम भी हुई थी खत्म। न जाने क्यों तुम्हारी याद आ रही है।। βαℓяαм