मन के बंधन नहीं, व्यापार सजाते हैं लोग आज कल कुछ ऐसे त्यौहार मनाते हैं लोग उपहार की कीमत से प्यार नापते हैं कब किसने क्या कितना लिया दिया पूरा ब्यौरा जांचते है कोई मतलब नहीं तुम्हें मेरे दिल में सम्मान कितना है सम्मान उस पैक किए डिब्बे की कीमत से आंकते है हंसी ठहाकों की गूंज कब से बंद है पहले थी डाइंग रूम के टीवी पर नजर और आज कल रिश्तों पर है मोबाइल का असर आमने-सामने बैठ कर भी मुलाकात आजकल होती नहीं चेहरे पर मुस्कान और भीतर ही भीतर तुझ से आगे बढ़ने की होड़ रिश्ते बुनती नहीं मशरूफ है सब कमाई के दौर में अक्सर यूं ही बात आजकल किसी से होती नहीं उम्मीद बची थी इन त्योहारों के दिनो से इन में भी अब दिल से दुआ सलाम होती नहीं!!! -Anjali A आज के त्यौहार