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गुलाम नहीं अब मैं परसों रात के अंधेरों का, कल रात

गुलाम नहीं अब मैं परसों रात के अंधेरों का, कल रात ही रोशनी से टकराया था 
बाते कम हुई , वादे ज़्यादा

कल वो ज़रा जल्दी में थी
आज लगता है ठहर ही जाएगी!
गुलाम नहीं अब मैं परसों रात के अंधेरों का, कल रात ही रोशनी से टकराया था 
बाते कम हुई , वादे ज़्यादा

कल वो ज़रा जल्दी में थी
आज लगता है ठहर ही जाएगी!