कभी वो भी जवां थे हरे पत्ते थे बाग-ए-गुलिस्तां में हवा के संग जज़्बे रखाँ थे ढलती उम्र बता गई जब तक जोश था छायां पाने को लोग जमा थे सूखे हुए जो ही झटक कर तोड़ गए सब साथ भी छोड़ गए सब ©Dr Supreet Singh #प्यार