जिनको गुमान था चलती हैं हवाएं उनके खौफ से। तूफाँ के एक झोंके ने उनका आस्तित्व मिटा दिया।। जिनको दम्भ था जलती है आग उनके कहर से। सुलगती ज्वालाओं ने उनको राख का ढेर बना दिया।। जिनको घमण्ड था मचलती हैं लहरें उनके शौक से। आक्रोश के जलजले ने उनको जड़ से बहा दिया।। जिनको अहंकार था बढ़ती है दुनिया उनके कहने से। वक्त की ठोकर ने उनको आसमां से जमीं पर ला दिया।। जिनको खुशी होती थी किसी की आँख में आँसू आने से। व्यथित ह्र्दयों के शाप ने उनको पल भर में रुला दिया।। ......सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग' #अहंकार.....