कौन रोक रहा है तुम्हें, अपने पाँव उठाने को, काट दो उन हाथों को, जो रोके तुम्हें, अपने पांव जमाने को, मज़बूरियों कि बेड़ियां, जब चुभने लगे पाँव में, तोड़ दो मजबूर बेड़ियों को, दिखा दो जमाने को, बहुत ऊंचाई है आसमां कि, आकाश को नापने में, झुका के रख दो आसमां को, अपने हौंसले फैलाने को, बेमौसम कि बारिशें, जब डगमगा दें तुम्हारें जज़्बे को, हवाओं का रुख मोड़ दो, अपनी धाक जमाने को, टूट रही हो हिम्मत जब, प्यास की अधरों पर, पहुंचा दो समुंदर को अधरों तक, अपनी प्यास बुझाने को !! पेश है एक नयी ग़ज़ल :: कौन रोक रहा है तुम्हें... कौन रोक रहा है तुम्हें, अपने पाँव उठाने को, काट दो उन हाथों को, जो रोके तुम्हें, अपने पांव जमाने को, मज़बूरियों कि बेड़ियां, जब चुभने लगे पाँव में,