रात भी तेरे संग गुमसुम है मगर चांँद ख़ामोश नहीं फिर कैसे कह दूंँ आज मुझे होश नहीं ऐसे डूबा तेरे आँखों की गहराई में आज आँखों में मेरे चढ़ गया मय जैसा नशा ही सही इतनी गुमसुम सी क्यों रहने लगी हो आजकल दिल नहीं लग रहा या कहीं और लगा बैठी हो गुमसुम ना बैठा करो पराई लगती हो मीठी बातें तो नहीं सही झगड़ा ही कर लो आज अभी कुछ उदासी सी थी उनके चेहरे पर जो हर पल हस्ते थे वो गुमसुम हैं उल्फ़त में डाल हमें गुमसुम हो गई हो नाराज़ हो हमसे आज या इज़हार–ए–मोहब्बत करने से ज़माने से डर रही हो आज तो राज़–ए–दिल खोल दो हाल–ए–दिल ना सही पर कुछ तो बोलो तू हज़ार बार रूठे माना लूंँगा तुझे लेकिन तेरी मेरी मोहब्बत में शामिल कोई दूसरा ना हो।। ♥️ Challenge-698 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।