सुप्रभात, मित्रो: एक नई ग़ज़ल दिल से: *********************************** सब के हिस्से में ज़रा सी ज़िंदगी रह जायगी, इन अंधेरों में कहीं कुछ रोशनी रह जायगी। उनकी चाहत में अगर हम बेखबर रहने लगे, होश ग़ुम हो जायगा बस बेख़ुदी रह जायगी। आजकल इन बस्तियों में कौन ज़िंदा है कहीं, चीख़ने वालों के हिस्से ख़ामुशी रह जायगी। मौत के सौदागरों पर ग़र भरोसा कर लिया, लाश के हिस्से बुतों की बंदगी रह जाएगी। जब हमें सूरज की आदत ही नहीं इस मुल्क में, इसलिए हमसे बिछड़ कर चांदनी रह जायगी। उनके घर कालीन पर चलने की हिम्मत ही नहीं, कह न दें पैरों से उनमें गंदगी रह जायगी। उम्र भर कितनी जुटाओगे यहाँ पर रौनकें, रुख़सती के वक्त तो बस सादगी रह जायगी। रंग-रोगन के छलावों में भटकती जिंदगी, साथ जब कोई न होगा, 'मुफ़लिसी' रह जायगी। ************************************ 2122/2122/2122/212 श्रवण कुमार 'मुफ़लिस' ©श्रवणकुमार 'मुफ़लिस' #ज़िंदगी_तुझसे_प्यार_बहुत #Sky