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दिल के कोने कोने से बिन साज बाज के ध्वनियों से। जि

दिल के कोने कोने से बिन साज बाज के ध्वनियों से।
जिसका मन तृप्त रहा करता पुष्प वृक्ष के कलियों से।
जो भर भावों की धारा से नित प्रेम राष्ट्र की नारा से।
समलंकृत करता वसुधा को वो पूजा जाता आशा से।
है वीर वही,है धीर वही,जो अब विरक्त है तृष्णा से।
 निज राष्ट्र प्रेम की इक्षा से मानवता की अभिरक्षा से।

©Ajay Kumar Mishra
  राष्ट्र प्रेम

राष्ट्र प्रेम #कविता

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