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अब अक्सर किसी शाम डूबते सूरज के साथ निकल जाती


अब अक्सर किसी शाम 
  डूबते सूरज के साथ निकल जाती हूं 
सड़कों पर बेपरवाह बेवजह..
कभी तुम्हारी ढेरों बातें होती हैं
कभी नाराजगी साथ होती है
तुम्हारी तरह अब
मुझे भी सड़कें पसंद हैं!!


तुम्हरे घर तक की सड़क सबसे खास है
पर वहां से गुजरना बवाल है
तुम्हारी मौजूदगी की एक उम्मीद पर
 उस मोड़ पर रुकना भी कमाल है
वहां, जहां से तुम होकर कभी घूमने
 तो कभी मंदिर जाते हो!!

और जानते हो 
ये सड़कें तुम सी हैं
ये तन्हा नहीं छोड़ती
ये बोलना नहीं छोड़ती
कई बातें तो कभी कई यादें 
जोड़ कर रखती है खुद में!!
अब जब तुमसे बात नहीं होती 
तो ये सड़कें ही हैं 
जिस पर गुज़रकर 
मैं जी लेती हूं पल पल
बीता हर मंजर

तुम्हारी तरह अब 
मुझे भी सड़कें पसंद हैं!!

©Nikita
  #सड़कें
mona4519531151623

Nikita

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#सड़कें

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