बचपन की यादें कुछ अल्फाज है पुराने से,, लड़कपन के सुहाने से .... कुछ तितलियों की बातें थी,, कुछ रंगीले अफसाने है ... भाग भागकर दौड कूद कर ,, थककर हम सो जाते थे ,, मंदिर की घंटी से कभी कभी पापा की बोली से जाग जाते थे ... कुछ रस्में थी सगाई में ,, रसगुल्ले थे मिठाई में ... सुकून था पेड की छाँव में ,, मिट्टी से सने उन पाँव में ... उस आँगन में रंगोली थी ,, जहां खेली हमने होली थी ... अब खुस्ख है अखबार भी ,, रूखे है बाजार भी ... कहाँ गई वो मौज की टोली ,, गुम हो गई हँसी ठिठौली !!! #bachpan ki yadein