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पैसा जब से बढ़ गया, प्रेम रूप जो छुट गया। अंहकार स

पैसा जब से बढ़ गया, प्रेम रूप जो छुट गया।
अंहकार से मैं डुब गया।
सब तालमेल छुट गये, सब दोस्त यार दूर गये।
मन उलझन मे डुब गया, हमसे प्रेम जब दूर गया।
अहंकार कि वाणी मे, सब हमसे लुट गया।
रीत न जाने प्रीत की बाते।
उलझन को सुलझाते सुलझाते, 
मैं उलझन मे डुब गया ।
अब यह सारा जग हमसे रूठ गया ।
                                               भरत लाल
पैसा जब से बढ़ गया, प्रेम रूप जो छुट गया।
अंहकार से मैं डुब गया।
सब तालमेल छुट गये, सब दोस्त यार दूर गये।
मन उलझन मे डुब गया, हमसे प्रेम जब दूर गया।
अहंकार कि वाणी मे, सब हमसे लुट गया।
रीत न जाने प्रीत की बाते।
उलझन को सुलझाते सुलझाते, 
मैं उलझन मे डुब गया ।
अब यह सारा जग हमसे रूठ गया ।
                                               भरत लाल
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