जल गया शहर सारा बस इस ऐतबार मे, पहले सफे पर आएगी खबर अखबार में। रात हुई मगर परिंदा लौटा नहीं घर को, कुछ बच्चे भूखे बैठे है घर इंतजार में। सभी की भूख का इलाज करने निकले थे जो, वो करते है छप्पन भोग अब दरबार में। बिकवाली है हो रही पुर्खो की जागीर की, बोलियां लगाने खड़े है बस बाजार में। वो जो चुप है आज भी, चुप थे उस रोज भी, बच्चे जिंदा चुनवा दिए थे जब दिवार मे। मोहब्बत सियासत सब एक ही सी लगती है, मिलता नहीं निशां जुर्म का हर शिकार में। जनाज़े को तेरे कांधा देने रहेगा कौन तरूण, जब सब ही कत्ल हो जाएंगे इस कू-ए-यार में। #caa #npr #delhiriots #politics #hindiwriters #ghazal #tarunvijभारतीय #hindishayari