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बचपन में ही मिट जाती है मासूमियत ना जाने कितनी मा

बचपन में ही मिट जाती है मासूमियत 
ना जाने कितनी मासूम जिंदगियों की

रहम नहीं करती है जिंदगी भी इन पर
इनकी मासूम सी मुस्कान मिटाने में।

कभी उठाती मांँ बाप का साया सर से,
कभी गरीबी के दलदल में फंँसा देती है।

कभी कहीं कोई बच्ची मार दी जाती,
कभी कहीं पैदा होने ही नहीं पाती है।

बचपन का सुख नसीब में ही नहीं होता
इनकी किस्मत जन्म से ही रूठ जाती है। ➡ प्रतियोगिता संख्या - 09

➡ शीर्षक - मासूम जिंदगी 

➡ सुन्दर शब्दों से आठ पंक्तियों मे रचना लिखें

➡ समय सीमा- आज रात 12 बजे तक।
बचपन में ही मिट जाती है मासूमियत 
ना जाने कितनी मासूम जिंदगियों की

रहम नहीं करती है जिंदगी भी इन पर
इनकी मासूम सी मुस्कान मिटाने में।

कभी उठाती मांँ बाप का साया सर से,
कभी गरीबी के दलदल में फंँसा देती है।

कभी कहीं कोई बच्ची मार दी जाती,
कभी कहीं पैदा होने ही नहीं पाती है।

बचपन का सुख नसीब में ही नहीं होता
इनकी किस्मत जन्म से ही रूठ जाती है। ➡ प्रतियोगिता संख्या - 09

➡ शीर्षक - मासूम जिंदगी 

➡ सुन्दर शब्दों से आठ पंक्तियों मे रचना लिखें

➡ समय सीमा- आज रात 12 बजे तक।