पिता की व्यथा केपस्न में पढ़ें बेटी की जिद से विवश हो कर | कह दिया जा कर लो विवाह उसी से, कल्पित मन से शिला ह्रदय पर ढोकर || विस्मय विचित्र छाया अब मन में, पुत्री का मोह के सिवा न कुछ शेष जीवन में, बस एक प्रश्न मन को घेरे बैठा है| समस्या यह विचित्र यह काल भुजंग सा ऐठा है ||