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शायद तुम ग़लत हो, हाँ ग़लत हुँ मैं! जब मैंने उसको उस

शायद तुम ग़लत हो, हाँ ग़लत हुँ मैं!
जब मैंने उसको उससे ज़्यादा जानना चाहा, तो ये ख़ता थी मेरी!
हाँ जब उसके हर पोस्ट मे ख़ुद को ढूंढना चाहा, तो ये ख़ता थी मेरी!
जब practical हुए बग़ैर उसकी नादनोयों को मैने ख़ूबसूरत माना, तो ये ख़ता थी मेरी!
जब उसके वजूद को अपनी नज़रों से ढांकना चाहा,तो ये ख़ता थी मेरी!
पर ज़रूरी तो नही के मेरी खताएं मुहब्बत न हो!
ये रब का फैसला तो नही के जहां ख़ता हो वहां उल्फत न हो!
हाँ जब उसका हाथ थामा था तो रूह सिहर गयी थी लम्स से उसके, और वो भी सर्द पड़ गयी थी मेरी तपिश से!
हाँ खताएं हम दोनों ने की थी, पर यूँ भी नही के मुहब्बत नही थी!
और भी चेहरे थे कई सुर्ख़ ओ शीरीं, पर मुहब्बत में वही लगती हसीं थी!
हाँ उसके हर ज़र्रे में फ़ना हो जाने की चाहत शायद ख़ता थी!
पर रोका है ख़ुद को ये मुहब्बत थी, वफ़ा थी!
हाँ ग़लत हुँ मैं, के मुहब्बत का फ़लसफ़ा पढ़े बग़ैर कर ली आशिक़ी!
पर plan करके तो नही होती मुहब्बत,
Plan करके तो जंगे लड़ी जाती हैं! और हमारी तो बिना किसी plan के नज़रें लड़ी थी!
हाँ शायद अक़्ल का भी कुछ क़ुसूर है इसमें,
वो महज़ बैठा तमाशा देखता है!
पर अक़्ल कब इश्क़ से वाकिफ हुआ है!
ख़िरद कब उतरा है सेहरा के सफर में, कब उसे उल्फ़त से कोई राब्ता है!
और कुछ होगा नही जिसमे ख़ता है, हाँ ग़लत हूँ मैं, अगर उल्फ़त गुनाह है! 
पर मुहब्बत आरज़ी रिश्ता नही है! इस गुनाह से उम्र भर तौबा नही है!
हाँ ग़लत हूँ मैं...के तेरी हर कमी को....तेरी खूबी ही समझता जा रहा हूँ!
इश्क़ का शायद यही माज़ी रहा है, मैं वही तारीख़ फिर दोहरा रहा हूँ! #reply2yahyabootwala #shayadtumgalatho #yahyabootwala #khata #love
शायद तुम ग़लत हो, हाँ ग़लत हुँ मैं!
जब मैंने उसको उससे ज़्यादा जानना चाहा, तो ये ख़ता थी मेरी!
हाँ जब उसके हर पोस्ट मे ख़ुद को ढूंढना चाहा, तो ये ख़ता थी मेरी!
जब practical हुए बग़ैर उसकी नादनोयों को मैने ख़ूबसूरत माना, तो ये ख़ता थी मेरी!
जब उसके वजूद को अपनी नज़रों से ढांकना चाहा,तो ये ख़ता थी मेरी!
पर ज़रूरी तो नही के मेरी खताएं मुहब्बत न हो!
ये रब का फैसला तो नही के जहां ख़ता हो वहां उल्फत न हो!
हाँ जब उसका हाथ थामा था तो रूह सिहर गयी थी लम्स से उसके, और वो भी सर्द पड़ गयी थी मेरी तपिश से!
हाँ खताएं हम दोनों ने की थी, पर यूँ भी नही के मुहब्बत नही थी!
और भी चेहरे थे कई सुर्ख़ ओ शीरीं, पर मुहब्बत में वही लगती हसीं थी!
हाँ उसके हर ज़र्रे में फ़ना हो जाने की चाहत शायद ख़ता थी!
पर रोका है ख़ुद को ये मुहब्बत थी, वफ़ा थी!
हाँ ग़लत हुँ मैं, के मुहब्बत का फ़लसफ़ा पढ़े बग़ैर कर ली आशिक़ी!
पर plan करके तो नही होती मुहब्बत,
Plan करके तो जंगे लड़ी जाती हैं! और हमारी तो बिना किसी plan के नज़रें लड़ी थी!
हाँ शायद अक़्ल का भी कुछ क़ुसूर है इसमें,
वो महज़ बैठा तमाशा देखता है!
पर अक़्ल कब इश्क़ से वाकिफ हुआ है!
ख़िरद कब उतरा है सेहरा के सफर में, कब उसे उल्फ़त से कोई राब्ता है!
और कुछ होगा नही जिसमे ख़ता है, हाँ ग़लत हूँ मैं, अगर उल्फ़त गुनाह है! 
पर मुहब्बत आरज़ी रिश्ता नही है! इस गुनाह से उम्र भर तौबा नही है!
हाँ ग़लत हूँ मैं...के तेरी हर कमी को....तेरी खूबी ही समझता जा रहा हूँ!
इश्क़ का शायद यही माज़ी रहा है, मैं वही तारीख़ फिर दोहरा रहा हूँ! #reply2yahyabootwala #shayadtumgalatho #yahyabootwala #khata #love