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झुकी हुई मेरी पलकों में,कई रात ठहर गयी तूने जब आख़

झुकी हुई मेरी पलकों में,कई रात ठहर गयी 
तूने जब आख़री बार देखा,मुलाकात ठहर गयी 


आँसुओ के सागर में डूबी मैं किनारों पर बैठकर
बहती हुई  लहर में  मेरे सारे जज्बात ठहर गए 


कोई सुन ले ना मेरी आहट,खामोशी के शोर में
सदियों से मेरे होंठो पे जैसे  कोई बात ठहर गयी 


एक प्यासी सी कली को कुछ बुन्दे तड़पा गयी
आसमान और जमीं के बीच,बरसात ठहर गयी 


कब तक रोकू अपनी साँसों को यादों से बांधकर
अब तो मौत के इंतेज़ार में मेरी हयात ठहर गयी


निकला था दर्द का काफिला,आँखो की वीरानियों में
छलका जब जाम प्यालों से,फिर हालात ठहर गए


खिलते हुए बाग की मैं ,इक ठुकराया गुलाब थी
थामा जो हाथ ग़म ने,फिर उसके साथ ठहर गयी


अब तो दिखा दे रास्ता मुझे,मंजिल का ऐ ख़ुदा
इक छोटे से जहाँ में मेरी,सारी क़ायनात ठहर गयी।

©Unbreakable Dharma pandit
  official manoj Namita Sharma

official manoj @Namita Sharma #Poetry

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