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कभी रिश्ते, कभी रास्तों पर पलता रहा हूं, आज सिक्को

कभी रिश्ते, कभी रास्तों पर पलता रहा हूं,
आज सिक्कों की खनक, चमक ढूंढता हूं,
मशगूल वक्त से ज्यादा, 
क्या जाने, जी या मर रहा हूं!!
क्या जाने, जी या मर रहा हूं!!

अनुशीर्षक जी या मर रहा हूं!
..............
बहरूपियों के संग बहरूपिया बन रहा हूं,
ज्यादा चुप रह कर उनके जैसा दिख रहा हूं,
हर बात में औकात आंकने की आदत सीख रहा हूं!

कद-काठी, रंग-रूप, ऊंच-नीच तौलता हूं,
किफायती हो सौदा पहले ही परखता हूं,
कभी रिश्ते, कभी रास्तों पर पलता रहा हूं,
आज सिक्कों की खनक, चमक ढूंढता हूं,
मशगूल वक्त से ज्यादा, 
क्या जाने, जी या मर रहा हूं!!
क्या जाने, जी या मर रहा हूं!!

अनुशीर्षक जी या मर रहा हूं!
..............
बहरूपियों के संग बहरूपिया बन रहा हूं,
ज्यादा चुप रह कर उनके जैसा दिख रहा हूं,
हर बात में औकात आंकने की आदत सीख रहा हूं!

कद-काठी, रंग-रूप, ऊंच-नीच तौलता हूं,
किफायती हो सौदा पहले ही परखता हूं,
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