चिरागों की मद्धम लौ में मेरे आराम बस ख्याल करतीं बिन कहे। चंद पलों में ही सही रातों को ये सिलवटें समझती हैं मुझे, वक्त बेवक्त मेरे साथ करवटें बदलती हैं मेरे साथ बिन पूछे। मेरी कोशिशों, मेरी थकान समझती है मेरी सिफ़ारिशें, बिन उलझे! एकाकीपन बटोर कर मेरा खोस लेती है तहों में अपनी, ये सिलवटें! सिलवटें -------- चिरागों की मद्धम लौ में मेरे आराम बस ख्याल करतीं बिन कहे। चंद पलों में ही सही रातों को ये सिलवटें समझती हैं मुझे, वक्त बेवक्त मेरे साथ करवटें बदलती हैं मेरे साथ बिन पूछे।