रूप में है शान्तता कभी प्रचण्ड रौद्रता हरो दरिद्रता प्रभु मनुज तुम्हें निहारता नमामि नीलकण्ठ हे जगत पिता नमन तुम्हें करो सभी अभय करो है जन जन पुकारता मिले न प्रेम अब कहीं है दुश्मनी पले अभी मनुष्य नोंचते मनुष्य गिद्ध बन गए सभी समाधि तोड़ दो प्रभु त्रिनेत्र अब तो खोल दो सुनो शिवा करो दया नित पुकारते सभी हृदय की पीर बढ़ गई जगत में अंधकार है हर एक दिशा है चीखती मचा हाहाकार है बचा न आसरा कोई सभी से आस उठ गई कष्ट दूर जो करे वो सिर्फ ओमकार है ©कवि मनोज कुमार मंजू #ओमकार #mahashivratri #महादेव #भोलेनाथ #शिवरात्रि #मनोज_कुमार_मंजू #मँजू