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वो दर्द रुखसुखी बैठी थी ज़िंदगी, मंजिलों का पता न

वो दर्द

रुखसुखी बैठी थी ज़िंदगी,
मंजिलों का पता न था
मन में घबराहट सी थी
वो दर्द भी बड़ा सायना था।

कुछ पाने के लिए
छड आया घर अपना, करू
  अब कैसे क्या,
ये मन में उठा अक , मंज़र था।
वो दर्द बड़ा भयानक था।

कुछ होश में दिखे थे,
कुछ बेहोश में लगे थे,
मगर आगे जाऊ कैसे,
खुद से ये सवाल बड़ा ,
भयानक था।
वो दर्द बड़ा नर्भय था।
                                   _विकास मेहता #Judge
वो दर्द

रुखसुखी बैठी थी ज़िंदगी,
मंजिलों का पता न था
मन में घबराहट सी थी
वो दर्द भी बड़ा सायना था।

कुछ पाने के लिए
छड आया घर अपना, करू
  अब कैसे क्या,
ये मन में उठा अक , मंज़र था।
वो दर्द बड़ा भयानक था।

कुछ होश में दिखे थे,
कुछ बेहोश में लगे थे,
मगर आगे जाऊ कैसे,
खुद से ये सवाल बड़ा ,
भयानक था।
वो दर्द बड़ा नर्भय था।
                                   _विकास मेहता #Judge