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"सोने की चिड़िया" हम धन और वैभव के लिए ही नहीं अपनी

"सोने की चिड़िया"
हम धन और वैभव के लिए ही नहीं
अपनी संस्कृति और
बेहतर जीवनशैली के लिए भी कहलाए
और 'विश्वगुरु' के रूप में प्रतिष्ठित हुए।
यह ऋग्वेद काल से 800 ई.तक हो चुका था Hello Resties! ❤️

भारतीय संस्कृति और दर्शन का एक रोचक पक्ष ये भी है कि उसकी छाप सीमाओं से परे पड़ोसी देशों पर भी रही।उन देशों के सामाजिक जीवन में हमारी विरासत का प्रभाव आज भी देखने को मिलता है।भारत चीन व ईरान के बीच स्थित प्रदेश को मध्य एशिया कहते हैं।अफगानिस्तान को पार्थियन लोग 'श्वेत भारत' के नाम से पुकारते थे।
इसी तरह पूर्वी एशिया में- तिब्बत,चीन,कोरिया,जापान आदि में 760 ई.तक बौद्ध दर्शन प्रवेश कर चुका था।
दक्षिण-पूर्वी एशिया - स्याम, मलय प्रायद्वीप (मलेशिया), कम्बोडिया (हिन्दचीन), सुमात्रा (इंडोनेशिया),चम्पा (वियतनाम), जावा,बोर्निया,लाओस (लवदेश) के साथ ही श्रीलंका जैसे देशों में हमारी संस्कृत और संस्कृति अपनी शाखाओं को विस्तार दे चुकी थी।वहाँ आज भी कई सारे प्रसिद्ध मठ मन्दिर स्थित हैं उनपर भारतीय स्थापत्य कला का प्रभाव भी देखने को मिलता है।भारतीय सभ्यता और संस्कृति का यह विस्तार 800 ई.तक हो चुका था।
😊🙏
Collab on this #rzpictureprompt and #पाठकपुराण
"सोने की चिड़िया"
हम धन और वैभव के लिए ही नहीं
अपनी संस्कृति और
बेहतर जीवनशैली के लिए भी कहलाए
और 'विश्वगुरु' के रूप में प्रतिष्ठित हुए।
यह ऋग्वेद काल से 800 ई.तक हो चुका था Hello Resties! ❤️

भारतीय संस्कृति और दर्शन का एक रोचक पक्ष ये भी है कि उसकी छाप सीमाओं से परे पड़ोसी देशों पर भी रही।उन देशों के सामाजिक जीवन में हमारी विरासत का प्रभाव आज भी देखने को मिलता है।भारत चीन व ईरान के बीच स्थित प्रदेश को मध्य एशिया कहते हैं।अफगानिस्तान को पार्थियन लोग 'श्वेत भारत' के नाम से पुकारते थे।
इसी तरह पूर्वी एशिया में- तिब्बत,चीन,कोरिया,जापान आदि में 760 ई.तक बौद्ध दर्शन प्रवेश कर चुका था।
दक्षिण-पूर्वी एशिया - स्याम, मलय प्रायद्वीप (मलेशिया), कम्बोडिया (हिन्दचीन), सुमात्रा (इंडोनेशिया),चम्पा (वियतनाम), जावा,बोर्निया,लाओस (लवदेश) के साथ ही श्रीलंका जैसे देशों में हमारी संस्कृत और संस्कृति अपनी शाखाओं को विस्तार दे चुकी थी।वहाँ आज भी कई सारे प्रसिद्ध मठ मन्दिर स्थित हैं उनपर भारतीय स्थापत्य कला का प्रभाव भी देखने को मिलता है।भारतीय सभ्यता और संस्कृति का यह विस्तार 800 ई.तक हो चुका था।
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