मेरी ज़िंदगी मेरी कहाँ सुनती हैं कठपुतली सी मुझे रोज़ नचाती हैं मोहब्बत में सब नाम लेते हैं कृष्ण का मेरी ज़ुबा नाम तुम्हारा लेती हैं तूने आशिक़ी भी की मुझे अब्र की तरह जब चाहा छाव हो, तभी बारिश होती हैं तुमसे मिल कर जब भी आते है हम तेरी खुशबू मेरे बदन से महकती आती हैं तू मुझसे छूट बसना चाहता हैं किसी और निगाह में मेरे लबों पे अब सिर्फ खामोशी रहती हैं क़दीम इश्क़ है मेरा दर्द से बदन पिज़र सी महसूस होती हैं बहुत चाहा के रोक लू खुशियो को आँचल में लेकिन वो कहा कभी रुकती हैं आज जो कह दिया अपने हक़ में कुछ सब को मेरी ये ज़ुबा चुभती हैं #kathputli#Nojotonews