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दैवीय पृवति और आसुरी प्रवृत्तियां ****

       दैवीय पृवति और आसुरी प्रवृत्तियां
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         समस्त पृथ्वी पर 14 जुन से ,
     नारी शक्ति और पुरुषार्थ शक्ति के अन्त: करण 
    द्वितीय महाभारत युद्ध जो हो रहा है।
      अहिंसा पर उसका पृथ्वी पर विराट रूप में,
 महासंग्राम होता दिखाई देना शुरू हो जाएगा। 
     अपनी आंखों से देखते रहिए समस्त संसार में ,
समस्त नारी शक्ति और पुरुषार्थ शक्ति में।
     पृथ्वी पर जो मेरे भक्त है वे मेरे पास ही रहेंगे।
      उनके अंतःकरण में शीतलता प्रदान कि जाएगी।
     जो मुढ़ और दुष्ट हैं समस्त धर्मों में सर्वप्रथम
 उनकी शांति भंग की जाएगी समस्त पृथ्वी के सभी धर्मों में।
    समस्त पृथ्वी पर सभी धर्मों के परमत्तव अंशों
 शरीर में उनके हृदय मैं स्थित हूं ।
     किसी को भी भविष्य में हृदय की इस आग पहचान नहीं हैं।
     भुतो का हृदय पुनः अग्नि तत्व अति तीव्र को 
नियंत्रित करने असफल होंगे। 
     कौरव पक्ष के समस्त अधर्मी पाखण्डी गुरुऔ को। 
   करुणा और दया का प्रयोग ना करें 
मेरे भक्तों इन अधर्मियों पर।
     आप देखते रहिए चुपचाप इस महासंग्राम युद्ध को
     समस्त धर्मों के तुच्छता पहचान वालों को संसार में।
  यह श्री गीता जी अठारहवां श्लोक गुप्त रहस्य भाव है

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       दैवीय पृवति और आसुरी प्रवृत्तियां
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