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(मेरी कहानी,मेरी जुबानी.....) #apni_rah #sapno_ki

(मेरी कहानी,मेरी जुबानी.....) #apni_rah  #sapno_ki_raah  #YourQuoteAndMine
Collaborating with Apni Rah☑️
पापा के एक्सपायर के बाद हम 5 यानि मैं, मां, दो भाई व बहन सब ननिहाल में आ गए,मैं उस वक़्त 6 साल की थी।यहाँ पर मां ने काम किया पूरी मेहनत से किसी को कहने का मौका न दिया,हमें पढ़ाया, और मेरे इंटरमीडिएट में अच्छे मार्क्स होने के कारण मेरा दिल्ली डाइट में नाम आ गया था तो टीचर का कोर्स कर लिया,सोचा अब तो नोकरी लग जायेगी पर नही पेपर पर पेपर थे,अब तैयारी भी करनी थी तो फिर मैं जब मां को पूरा दिन काम करते देखती तो मेरा हौसला बुलन्द हो जाता था,मैं खुद भी माँ का साथ देने के लिए NGO में मात्र 2000/-रूपयों मे पढ़ाने लगी और बाकि समय खुद का पढ़ा करती थी,हर रोज नई नोकरी का फॉर्म भरती, हर रोज नई तैयारी में जुट जाती,पर असफलता के अलावा कुछ नही मिलता,पढ़ाई भी लगभग पूरी हो गई पर आज का ज़माना नोकरी के बिना नही पूछता तो मैंने प्राइवेट में भी कोशिश की पर कुछ न हुआ हताश घर लौटती, कभी कभी तो अकेले में रो भी लिया करती पर वो भी वेस्ट था,सब पूछने लगते बेटा नोकरी लगी ???मैं मात्र मौन ! फिर ठान लिया और जी जान से पूरे 6 महीने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया मतलब बाहर की दुनिया को त्याग दिया।और अंजाम भी ख़ुशनुमा था, मेरा सिलेक्शन dsssb बोर्ड यानि दिल्ली नगर निगम प्राथमिक अध्यापिका के पद के लिये हो गया।और पूरी सोसायटी में नाम अलग हो गया,मानो छा गई थी मैं,मेरी माँ की खुशी का तो ठिकाना ही न था।बस यहिं थी मेरी चाह जो मुझे भी अंतिम समय तक मिल ही गई,औऱ मैं भी आज एक शिक्षक बन गई।

""""हौसला हो जो बुलन्द,
तो कुछ भी कर सकता हैं तेरा मन""
(मेरी कहानी,मेरी जुबानी.....) #apni_rah  #sapno_ki_raah  #YourQuoteAndMine
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पापा के एक्सपायर के बाद हम 5 यानि मैं, मां, दो भाई व बहन सब ननिहाल में आ गए,मैं उस वक़्त 6 साल की थी।यहाँ पर मां ने काम किया पूरी मेहनत से किसी को कहने का मौका न दिया,हमें पढ़ाया, और मेरे इंटरमीडिएट में अच्छे मार्क्स होने के कारण मेरा दिल्ली डाइट में नाम आ गया था तो टीचर का कोर्स कर लिया,सोचा अब तो नोकरी लग जायेगी पर नही पेपर पर पेपर थे,अब तैयारी भी करनी थी तो फिर मैं जब मां को पूरा दिन काम करते देखती तो मेरा हौसला बुलन्द हो जाता था,मैं खुद भी माँ का साथ देने के लिए NGO में मात्र 2000/-रूपयों मे पढ़ाने लगी और बाकि समय खुद का पढ़ा करती थी,हर रोज नई नोकरी का फॉर्म भरती, हर रोज नई तैयारी में जुट जाती,पर असफलता के अलावा कुछ नही मिलता,पढ़ाई भी लगभग पूरी हो गई पर आज का ज़माना नोकरी के बिना नही पूछता तो मैंने प्राइवेट में भी कोशिश की पर कुछ न हुआ हताश घर लौटती, कभी कभी तो अकेले में रो भी लिया करती पर वो भी वेस्ट था,सब पूछने लगते बेटा नोकरी लगी ???मैं मात्र मौन ! फिर ठान लिया और जी जान से पूरे 6 महीने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया मतलब बाहर की दुनिया को त्याग दिया।और अंजाम भी ख़ुशनुमा था, मेरा सिलेक्शन dsssb बोर्ड यानि दिल्ली नगर निगम प्राथमिक अध्यापिका के पद के लिये हो गया।और पूरी सोसायटी में नाम अलग हो गया,मानो छा गई थी मैं,मेरी माँ की खुशी का तो ठिकाना ही न था।बस यहिं थी मेरी चाह जो मुझे भी अंतिम समय तक मिल ही गई,औऱ मैं भी आज एक शिक्षक बन गई।

""""हौसला हो जो बुलन्द,
तो कुछ भी कर सकता हैं तेरा मन""