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बादल फट रहे हैं जल सैलाब उमड़ रहा है जन सैलाब बह

बादल फट रहे हैं 
जल सैलाब उमड़ रहा है 
जन सैलाब बह रहा है 
जमीं पै कश्तियाँ चल रहीं हैं 
तिनके की भाँति मकाँ ढह रहे हैं
कई लोग बेघर हो रहे हैं

मानो इस धरा पै समुन्दर अपना
अधिकार बढ़ाने का जतन कर रहा हो

मुझे तो ये आसमाँ-धरा की साजिश लग रही 
क्या अभी तक प्यास नहीं बुझी जमीं की ?
या अभी और संहार है बाकी ? #dkpatelpoetry 
#poetry 
#कविता 
#घनघोर_बारिश
बादल फट रहे हैं 
जल सैलाब उमड़ रहा है 
जन सैलाब बह रहा है 
जमीं पै कश्तियाँ चल रहीं हैं 
तिनके की भाँति मकाँ ढह रहे हैं
कई लोग बेघर हो रहे हैं

मानो इस धरा पै समुन्दर अपना
अधिकार बढ़ाने का जतन कर रहा हो

मुझे तो ये आसमाँ-धरा की साजिश लग रही 
क्या अभी तक प्यास नहीं बुझी जमीं की ?
या अभी और संहार है बाकी ? #dkpatelpoetry 
#poetry 
#कविता 
#घनघोर_बारिश