तुमने छुआ था मेरा जब हाथ चुपके-चुपके... कितने मचल उठे थें जज्बात चुपके-चुपके !! बिखरें हुए हैं ख़्वाबों के फूल सहने दिल में... आई थी दिल के घर में कोई रात चुपके-चुपके..!! बस्ती में ख़्वाहिशों की हलचल मचा गई हैं... वो इक झलक की देके सौग़ात चुपके-चुपके..!! क्या जाने खौफ़ क्या है उसके जहन में यारों.... करती हैं आजकल वों हर बात चुपके-चुपके..!! वों भी नहीं बताती अब द़र्द अपने दिल का... और हम भी सह रहें हैं सदमात चुपके-चुपके..!! आँखों का पानी देखीं नहीं है तुमने... अन्दर जो हो रही है बरसात चुपके-चुपके..!! यूँ कहने को तो मुझसे ही मिलने आई हैं... वों पर देखती हैं मेरी औक़ात चुपके-चुपके ।। #चुपके-चुपके