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"मैं तुम्हारे साथ हूँ ना" यह सिर्फ कुछ शब्द ही नहीं बल्कि एक एहसास है, जो पराए को भी अपना बना देता है।  ग़र कोई दर्द में हो तो बस " मैं तुम्हारे साथ हूँ ना " कह देने से दर्द कम लगने लगता है।  यदि आपके भी आस- पास कोई दर्द में है,  कोई हताश कोइ निराश है, तो उसका हाथ थाम के कह दो "कुछ नहीं होगा, मैं तुम्हारे साथ हूँ ना" भले ही आप उसे जिंदगी भर का साथ ना दे सको भले ही आप उसका दर्द खत्म ना कर सको, परंतु उस वक़्त उसे एक सहारा तो दे ही सकते हो ना, सांत्वना और अपनापन तो दे ही सकते हो..
_ अनुराधा सक्सेना _ #मैं_तुम्हारे_साथ_हूँ_ना

बहुत दिनों से नितिन मुझसे ठीक से बात नहीं कर रहा था। जिस वजह से मैं उससे नाराज़ थी  फिर उस पर गुस्सा और दिन-ब-दिन धीरे-धीरे खुद में ही चिड़चिड़ी होने लगी। लेकिन आज तो हद ही हो गयी, मैं इतनी चिड़चिड़ी हो गई थी कि  माँ को भी डांट दी। हालांकि माँ  मुझे कुछ नहीं बोली पर मुझे मालूम है उन्हें मेरी बातें दिल पे लगी होंगी।  इससे पहले की मैं अपना गुस्सा किसी और पर भी उतार देती, मैं अपने गुस्से की पोटली उठा के चल पड़ी नितिन के अस्पताल। 

मगर इससे पहले की मैं उसके पास जा के उसको कुछ बोलती। एक गर्भवती महिला दर्द से चिल्लाती बौखलाती हुई एम्बुलेंस से उतारी गई, चिकित्सकों के खाने का समय होने की वजह से उस व्यक्त वहाँ पे कुछ ही चिकित्सक थे,  कम चिकित्सक  मौजूद होने की वजह से नितिन ने भी उस गर्भवती महिला को सहारा दिया और उसे उसके वार्ड में ले के पहुँचा, जब उसकी चीखें कम नहीं हो रही थी तो यह देख कर उसने उसका हाथ प्यार से थामा और कहा "कुछ नहीं होगा, मैं आपके साथ हूँ ना" बस इतना सुनते ही वो शांत हो गई,  और नितिन का हाथ कस के पकड़ ली। उस वक़्त  मुझे एक फ़िल्म याद आ रही थी, जिसमें कुछ ऐसा ही होता है, सच ही है, फिल्में भी हकीकत से ही जुड़ी होती है। 

उस वक़्त मुझे उस पर गुस्सा नहीं,  बल्कि प्यार आ रहा था। उसके डॉ होने पे मुझे गर्व हो रहा था।
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"मैं तुम्हारे साथ हूँ ना" यह सिर्फ कुछ शब्द ही नहीं बल्कि एक एहसास है, जो पराए को भी अपना बना देता है।  ग़र कोई दर्द में हो तो बस " मैं तुम्हारे साथ हूँ ना " कह देने से दर्द कम लगने लगता है।  यदि आपके भी आस- पास कोई दर्द में है,  कोई हताश कोइ निराश है, तो उसका हाथ थाम के कह दो "कुछ नहीं होगा, मैं तुम्हारे साथ हूँ ना" भले ही आप उसे जिंदगी भर का साथ ना दे सको भले ही आप उसका दर्द खत्म ना कर सको, परंतु उस वक़्त उसे एक सहारा तो दे ही सकते हो ना, सांत्वना और अपनापन तो दे ही सकते हो..
_ अनुराधा सक्सेना _ #मैं_तुम्हारे_साथ_हूँ_ना

बहुत दिनों से नितिन मुझसे ठीक से बात नहीं कर रहा था। जिस वजह से मैं उससे नाराज़ थी  फिर उस पर गुस्सा और दिन-ब-दिन धीरे-धीरे खुद में ही चिड़चिड़ी होने लगी। लेकिन आज तो हद ही हो गयी, मैं इतनी चिड़चिड़ी हो गई थी कि  माँ को भी डांट दी। हालांकि माँ  मुझे कुछ नहीं बोली पर मुझे मालूम है उन्हें मेरी बातें दिल पे लगी होंगी।  इससे पहले की मैं अपना गुस्सा किसी और पर भी उतार देती, मैं अपने गुस्से की पोटली उठा के चल पड़ी नितिन के अस्पताल। 

मगर इससे पहले की मैं उसके पास जा के उसको कुछ बोलती। एक गर्भवती महिला दर्द से चिल्लाती बौखलाती हुई एम्बुलेंस से उतारी गई, चिकित्सकों के खाने का समय होने की वजह से उस व्यक्त वहाँ पे कुछ ही चिकित्सक थे,  कम चिकित्सक  मौजूद होने की वजह से नितिन ने भी उस गर्भवती महिला को सहारा दिया और उसे उसके वार्ड में ले के पहुँचा, जब उसकी चीखें कम नहीं हो रही थी तो यह देख कर उसने उसका हाथ प्यार से थामा और कहा "कुछ नहीं होगा, मैं आपके साथ हूँ ना" बस इतना सुनते ही वो शांत हो गई,  और नितिन का हाथ कस के पकड़ ली। उस वक़्त  मुझे एक फ़िल्म याद आ रही थी, जिसमें कुछ ऐसा ही होता है, सच ही है, फिल्में भी हकीकत से ही जुड़ी होती है। 

उस वक़्त मुझे उस पर गुस्सा नहीं,  बल्कि प्यार आ रहा था। उसके डॉ होने पे मुझे गर्व हो रहा था।