Nojoto: Largest Storytelling Platform

जतिन नाथ दास ---------------------- स्वतंत्रता सं

जतिन नाथ दास
----------------------

स्वतंत्रता संग्राम के महानायकों में से एक जो
आज ही के दिन 13 सितम्बर सन् 1929 को
वीरगति को प्राप्त हुए।

कैप्शन में पूरी जानकारी पढ़ें---- 💐
लाहौर जेल में भूख हड़ताल के 63 दिनों के बाद जतिन दास की मौत के सदमे ने पूरे भारत को हिला दिया। स्वतंत्रता से पहले अनशन(उपवास) से शहीद होने वाले एकमात्र व्यक्ति जतिन दास हैं। जतिन दास के देश प्रेम और अनशन की पीड़ा का कोई सानी नहीं।
---------------------–
जतिंद्र नाथ दास का जन्म 27 अक्टूबर सन् 1904 में हुआ। उनकी माता का नाम सुहासिनी देवी और पिता बंकिम बिहारी दास जो कोलकाता के थे। वह बंगाल में एक क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति में शामिल हो गए। जतिंद्र ने 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया। नवम्बर 1925 में कोलकाता में विद्यासागर कॉलेज में बी.ए. का अध्ययन कर रहे जतिन दास को राजनीतिक गतिविधियों के लिए गिरफ्तार किया गया था और मिमेनसिंह सेंट्रल जेल में बन्द रखा। वो राजनीतिक कैदियों से दुर्व्यवहार के खिलाफ भूख हड़ताल पर चले गए, 20 दिनों के बाद जब जेल अधीक्षक ने माफी मांगी तो जतिन ने अनशन त्याग किया।

भारत के अन्य भागों के क्रांतिकारियों द्वारा उनसे संपर्क किया गया तो वह भगत सिंह और कामरेड के लिए बम बनाने में भाग लेने पर सहमत हुए।14 जून 1929 को उन्हें क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए गिरफ्तार किया गया था और लाहौर षडयंत्र केस के तहत लाहौर जेल में कैद कर लिया।

लाहौर जेल में, जतिन दास ने अन्य क्रांतिकारी सेनानियों के साथ भूख हड़ताल शुरू कर दी। भारतीय कैदियों और विचाराधीन कैदियों के लिए समानता की मांग की।भारतीय कैदियों के लिए वहां सब दुखदायी था- जेल प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराई गई वर्दियां कई कई दिनों तक नहीं धुलती थी। रसोई क्षेत्र और भोजन चूहों और तिलचट्टों से भरा रहता था। कोई भी पठनीय सामग्री जैसे अखबार या कोई कागज आदि नहीं प्रदान किया गया था। जबकि एक ही जेल में अंग्रेजी कैदियों की हालत विपरीत थी।
जतिन नाथ दास
----------------------

स्वतंत्रता संग्राम के महानायकों में से एक जो
आज ही के दिन 13 सितम्बर सन् 1929 को
वीरगति को प्राप्त हुए।

कैप्शन में पूरी जानकारी पढ़ें---- 💐
लाहौर जेल में भूख हड़ताल के 63 दिनों के बाद जतिन दास की मौत के सदमे ने पूरे भारत को हिला दिया। स्वतंत्रता से पहले अनशन(उपवास) से शहीद होने वाले एकमात्र व्यक्ति जतिन दास हैं। जतिन दास के देश प्रेम और अनशन की पीड़ा का कोई सानी नहीं।
---------------------–
जतिंद्र नाथ दास का जन्म 27 अक्टूबर सन् 1904 में हुआ। उनकी माता का नाम सुहासिनी देवी और पिता बंकिम बिहारी दास जो कोलकाता के थे। वह बंगाल में एक क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति में शामिल हो गए। जतिंद्र ने 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया। नवम्बर 1925 में कोलकाता में विद्यासागर कॉलेज में बी.ए. का अध्ययन कर रहे जतिन दास को राजनीतिक गतिविधियों के लिए गिरफ्तार किया गया था और मिमेनसिंह सेंट्रल जेल में बन्द रखा। वो राजनीतिक कैदियों से दुर्व्यवहार के खिलाफ भूख हड़ताल पर चले गए, 20 दिनों के बाद जब जेल अधीक्षक ने माफी मांगी तो जतिन ने अनशन त्याग किया।

भारत के अन्य भागों के क्रांतिकारियों द्वारा उनसे संपर्क किया गया तो वह भगत सिंह और कामरेड के लिए बम बनाने में भाग लेने पर सहमत हुए।14 जून 1929 को उन्हें क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए गिरफ्तार किया गया था और लाहौर षडयंत्र केस के तहत लाहौर जेल में कैद कर लिया।

लाहौर जेल में, जतिन दास ने अन्य क्रांतिकारी सेनानियों के साथ भूख हड़ताल शुरू कर दी। भारतीय कैदियों और विचाराधीन कैदियों के लिए समानता की मांग की।भारतीय कैदियों के लिए वहां सब दुखदायी था- जेल प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराई गई वर्दियां कई कई दिनों तक नहीं धुलती थी। रसोई क्षेत्र और भोजन चूहों और तिलचट्टों से भरा रहता था। कोई भी पठनीय सामग्री जैसे अखबार या कोई कागज आदि नहीं प्रदान किया गया था। जबकि एक ही जेल में अंग्रेजी कैदियों की हालत विपरीत थी।

💐 लाहौर जेल में भूख हड़ताल के 63 दिनों के बाद जतिन दास की मौत के सदमे ने पूरे भारत को हिला दिया। स्वतंत्रता से पहले अनशन(उपवास) से शहीद होने वाले एकमात्र व्यक्ति जतिन दास हैं। जतिन दास के देश प्रेम और अनशन की पीड़ा का कोई सानी नहीं। ---------------------– जतिंद्र नाथ दास का जन्म 27 अक्टूबर सन् 1904 में हुआ। उनकी माता का नाम सुहासिनी देवी और पिता बंकिम बिहारी दास जो कोलकाता के थे। वह बंगाल में एक क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति में शामिल हो गए। जतिंद्र ने 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया। नवम्बर 1925 में कोलकाता में विद्यासागर कॉलेज में बी.ए. का अध्ययन कर रहे जतिन दास को राजनीतिक गतिविधियों के लिए गिरफ्तार किया गया था और मिमेनसिंह सेंट्रल जेल में बन्द रखा। वो राजनीतिक कैदियों से दुर्व्यवहार के खिलाफ भूख हड़ताल पर चले गए, 20 दिनों के बाद जब जेल अधीक्षक ने माफी मांगी तो जतिन ने अनशन त्याग किया। भारत के अन्य भागों के क्रांतिकारियों द्वारा उनसे संपर्क किया गया तो वह भगत सिंह और कामरेड के लिए बम बनाने में भाग लेने पर सहमत हुए।14 जून 1929 को उन्हें क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए गिरफ्तार किया गया था और लाहौर षडयंत्र केस के तहत लाहौर जेल में कैद कर लिया। लाहौर जेल में, जतिन दास ने अन्य क्रांतिकारी सेनानियों के साथ भूख हड़ताल शुरू कर दी। भारतीय कैदियों और विचाराधीन कैदियों के लिए समानता की मांग की।भारतीय कैदियों के लिए वहां सब दुखदायी था- जेल प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराई गई वर्दियां कई कई दिनों तक नहीं धुलती थी। रसोई क्षेत्र और भोजन चूहों और तिलचट्टों से भरा रहता था। कोई भी पठनीय सामग्री जैसे अखबार या कोई कागज आदि नहीं प्रदान किया गया था। जबकि एक ही जेल में अंग्रेजी कैदियों की हालत विपरीत थी। #yqdidi #स्वतंत्रतासेनानी #yqhistory #पाठकपुराण #जतिननाथदास