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बड़ी मेहनत से मांगते हैं बड़ी उम्मीद से पालते हैं

बड़ी मेहनत से मांगते हैं 
बड़ी उम्मीद से पालते हैं 
सपने संजोते हैं
 कड़ी मेहनत करके 
पढ़ाई लिखाई का खर्च उठाते हैं।
 यह सोचकर कि बड़े होकर
 हमारी औलाद हमें बुढ़ापे में सेवा करेगी। 
सुख मिलेगा!
लेकिन 3-3 4-4 बेटे-बहु होने 
के बाद भी उनको दो रोटी दो वक्त की 
रोटी मयस्सर नहीं हो पाती।
मां बाप बोझ बन जाते हैं 4-4 
औलादों का पेट भरने वाले मां-बाप
 बुढ़ापे में असहाय हो जाते हैं।
 ऐसी औलादों से तो बे-औलाद ही अच्छा है।

©Vijay Vidrohi मां-बाप #बुढापा #PARENTS #my #New #poem #Poetry #shayri #Love #Life #RespectYourParents
बड़ी मेहनत से मांगते हैं 
बड़ी उम्मीद से पालते हैं 
सपने संजोते हैं
 कड़ी मेहनत करके 
पढ़ाई लिखाई का खर्च उठाते हैं।
 यह सोचकर कि बड़े होकर
 हमारी औलाद हमें बुढ़ापे में सेवा करेगी। 
सुख मिलेगा!
लेकिन 3-3 4-4 बेटे-बहु होने 
के बाद भी उनको दो रोटी दो वक्त की 
रोटी मयस्सर नहीं हो पाती।
मां बाप बोझ बन जाते हैं 4-4 
औलादों का पेट भरने वाले मां-बाप
 बुढ़ापे में असहाय हो जाते हैं।
 ऐसी औलादों से तो बे-औलाद ही अच्छा है।

©Vijay Vidrohi मां-बाप #बुढापा #PARENTS #my #New #poem #Poetry #shayri #Love #Life #RespectYourParents
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Vijay Vidrohi

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