जगत का खेल निराला है। दौड़ में हर कोई मतवाला है। भूल गए सब अपना पराया। हर कोई नोंचने वाला है। एक दूसरे पर टोंट है कसते। मददगार न भाने वाला है। आगे मीठे बनते सब हैं। पीछे गाली देने वाला है। जिस थाली में खाया बैठ। उसी थाली को तोड़ डाला है। छेद की बात तो दूर की भैया। यहां नमक भी मिलावट वाला है। - नेहा शर्मा अपनापन कहीं तो दिखाओ