#LabourDay एक क्वारंटाइन सेन्टर की कहानी चलो सुनाओ अपनी ज़ुबानी... डरे, सहमे है सब... क्या बूढ़े,क्या बच्चे,, क्या नर और नारी..।। मिलो सफ़र तय कर... आये अपने मिट्टी के पास,, है घर पास ,पर है बहुत दूर..,, रहने को अकेले और मजबूर। कहलाए खुद के देश मे ये, ...प्रवेसी मज़दूर..!!! अपनी व्यता ये किसे बताए पास है इनके ढेर सारे लोग,, पर उचित दूरी के कारण,, खुद का वेदना किसे सुनाए?? खाना,पीना,कपड़े और दवा... पाए ये हर सुख सुविधा,, पाने को साथ अपनो का ये... है कैसी ये इनकी दुविधा...!! एक बटवारा हुआ 1947 में तब भी कई प्रवेसी थे... ...और कश्मीरी पंडित, भी कभी प्रवेसी थे,, सायद..,यही वेदना से वो गुज़रे होंगे..!!! #migrant labour