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साजिशें से कुछ यूं हुई है साथ हमारे गमों में कोई न

साजिशें से कुछ यूं हुई है साथ हमारे
गमों में कोई नहीं रहा पास हमारे

खंजर से जख्म जिसने भी दिए हमको
वो सभी लोग थे कभी खास हमारे

हमसे जुबानी जंग ठीक नहीं साहब
तुम्हें जवाब नहीं आएंगे रास हमारे

वो जो कभी समझते थे सेठ खुद को
वो भी बनना चाहते हैं दास हमारे

यूं तो हम रुकते नहीं किसी की खातिर
मगर तुम जो देखो तो रुकते हैं सांस हमारे

©Kavita Pandey #New #Shayar #kavita 

#Books
साजिशें से कुछ यूं हुई है साथ हमारे
गमों में कोई नहीं रहा पास हमारे

खंजर से जख्म जिसने भी दिए हमको
वो सभी लोग थे कभी खास हमारे

हमसे जुबानी जंग ठीक नहीं साहब
तुम्हें जवाब नहीं आएंगे रास हमारे

वो जो कभी समझते थे सेठ खुद को
वो भी बनना चाहते हैं दास हमारे

यूं तो हम रुकते नहीं किसी की खातिर
मगर तुम जो देखो तो रुकते हैं सांस हमारे

©Kavita Pandey #New #Shayar #kavita 

#Books