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आज़ादी , किसे नहीं भाती । आज , इक बच्चे को भी । मै

आज़ादी , किसे नहीं भाती ।
आज , इक बच्चे को भी ।
मैंने देखा अपने कॉपी ,
के कागज़ फाड़ उड़ाते यूंही ।
बनाते कागज़ को कश्ती ,
बनाते कभी पतंग उसकी ।
फिर पूछ ही लिया , मर्ज़ी उसकी ।
तो , बेधड़क उसने भी कही मन की ।
बस , आज़ाद ही तो किया हैं मैंने भी ।

©Anuradha Sharma
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