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वृक्ष हूँ-तनकर खड़ा हूँ, सजग हूँ-प्रहरी की भाँति ।

वृक्ष हूँ-तनकर खड़ा हूँ, 
सजग हूँ-प्रहरी की भाँति ।
सोचता रहता हूँ प्रति क्षण,
कैसे बचाऊँ आमजन के,
मुखङे की सहज कांति ।।
मुझसे सम्मोहित होकर ,
लोग खिंचे आते हैं मुझ तक,
बैठते हैं सुकून की तलाश मे
और चाहते हैं क्षणिक शांति ।।
सुन पथिक,मेरी जरूरत है तुझे ,
यह समझ और कर ले चितन,
पौधा नहीं, मैं मित्र हूँ, 
मुझको उगा! मन मे ना रख भ्रांति ।।




पुष्पेन्द्र "पंकज"

©Pushpendra Pankaj
  #alone वृक्ष हूँ मैं

#alone वृक्ष हूँ मैं #कविता

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