*कब तक चलेगा झूठ* झूठ के हजार मुखोटे चेहरे पर लगाकर हर इंसान यहाँ घूमता हुआ नजर आता झूठ से भरी इस दुनिया में हर झूठ मुझे घनघोर अंधेरे से भी काला नजर आता जाने क्यों मुझे इतना विश्वास हो जाता सच में लिपटकर जब झूठ सामने आता झूठ से भरे काले दिल वालों के बीच में सच्चे दिल का दरवाजा नजर ना आता क्या ऐसी ही दुनिया में जीना होगा मुझे यही सोचकर मेरा मन हताश हो जाता अगर चलूँ सच की राह पर खुद अकेला क्यों कोई मुझ पर विश्वास नहीं कर पाता आखिर इस झूठ के अन्दर क्या छुपा है हर कोई इस झूठ का गुलाम नजर जाता क्यों आजकल कोई अपने ही बच्चों को सच के बदले में झूठ बोलना सिखलाता बच गया है सच केवल किताबों के अन्दर किसी के जहन में ढूंढे से भी मिल ना पाता कब तक चलेगा ये संसार झूठ के दम पर इसके बचने का आसार नजर नहीं आता *ॐ शांति*