बात निकली तो बात चली होगी, कुछ खास महबूब की गली होगी। दर्दे जुदाई दबा के अपने सीने में, उदास सी सुनहरी शाम ढली होगी। खूब हंस रहा वो शख्स महफिल में, लगे अरमानों की होली जली होगी। कोई यूं ही नही बना करता है मोती, बूंद स्वाती की सिप्पी में पली होगी। तभी तो वो उठा रहा है ऐसे उंगली, सच यही उसकी दाल न गली होगी। बेशक खूब सजी है महफिल लेकिन, यूं सबको रैना"की कमी खली होगी। ...... . .रैना ©Rajinder Raina अरमानों की होली