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निगाहों से वो कागज़ पे उतरता था, यहां भी तो वो मु

निगाहों से वो कागज़ पे उतरता था,
यहां भी तो वो मुझसे बिछड़ता था,

कमाल है ये आंखों का काजल भी ,
अश्क लेकर हर रात  ये उतरता था,

गली का इक इक पथर महके देखो,
महबूब जिन जिन पे से गुजरता था,

मेरी कब्र की गहराई ही बताती राज़,
कौन कौन  मेरी मौत से मुकरता था,

रस्मे भी सारी निभातीं ज़माने की मैं ,
मगर हर शख्स मुझसे किलसता था।









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निगाहों से वो कागज़ पे उतरता था,
यहां भी तो वो मुझसे बिछड़ता था,

कमाल है ये आंखों का काजल भी ,
अश्क लेकर हर रात  ये उतरता था,

गली का इक इक पथर महके देखो,
महबूब जिन जिन पे से गुजरता था,

मेरी कब्र की गहराई ही बताती राज़,
कौन कौन  मेरी मौत से मुकरता था,

रस्मे भी सारी निभातीं ज़माने की मैं ,
मगर हर शख्स मुझसे किलसता था।









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