अपनो का प्यार हूं,मैं देश का अभिमान हूं जनता का विचार हूं,फिर भी जाने क्यों अपनो के बीच शर्मशार हूं हिंदुस्तान की आधार हूं, कण कण का विश्वास हूं मैं ही कबीर,मैं ही दिनकर हूं फिर अपने ही घर, क्यूं मैं छिपकर हूं? कभी गांधी की चरखा हूं आजादी की खातिर बजने वाली डंका हूं मैं ही कश्मीर,मैं ही कन्याकुमारी हूं दो अलग विचारों को जोड़ती, मैं वो बोली हूं अनपढ़ से ज्ञानी बनाती हूं हर जन में ऋषि ढूंढ लेती हूं आपसी रिश्तों की संधि हूं अलंकारों से अलंकृत मैं हिंदी हूं हर रस की मैं खान हूं फिर लगती, सबको क्यूं बेजान हूं? अंग्रेजी को तुम ऐसे अपनाते हो गुलामी की बेड़ियां जैसे खुद ही जकड़े जाते हो मां हूं तुम्हारी, क्यूं ऐसे तिरस्कृत करते हो? अपने पूर्वजों से क्या यही सीखते हो? भारत मां के माथे की बिंदी हूं रोकर अपना दुख सुनाती,मैं हिंदी हूं आज,अपने ही बेटों के बीच बंदी हूं अपने ही बेटों के बीच में बंदी हूं #quotes #poem #hindipoetry #hindidiwas Ambrish Dwivedi #instawriters #thoughtoftheday #googlequotes #deshbhakti