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राजनीति जब नाम नीति है यहां नियति का काम नहीं हर क

राजनीति जब नाम नीति है
यहां नियति का काम नहीं
हर कुनबे की अलग नियत है
नीति एक आसान नहीं
एक नीति में बारह बिंदू
अपना अपना देखो मुस्लिम हिंदू
यह एक पेड़ की लकड़ी सी
कुछ लाभ हानि में जकड़ी सी 
कोई कहे बनाओ घर तो




कोई जला मिटाए ठंडी
और विधाता ने ही मौसम
जब गरम और ठंड बनाए है
तब नेता जो महा निपुण है
सब लाभ हानि गिनवाए है
नही दोष देता मैं उसको
जो सहस शीश उपजाए है
कितना संगम धैर्य लिए
जो सबको नाच नचाए है
तुझे रोशनी उसको छाया
ऐसी टार्च जलाए है

©दीपेश
  #नेताजी